शंघाई सहयोग संगठन (SCO)


SCO सम्मेलन: एक परिचय

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा गठबंधन है, जिसकी स्थापना 15 जून 2001 को चीन के शंघाई में हुई थी। यह संगठन मूल रूप से चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा स्थापित किया गया था। बाद में भारत और पाकिस्तान भी इसके सदस्य बने, जिससे इसका प्रभाव और भी बढ़ गया।

एससीओ का मुख्य उद्देश्य

इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है। इसके अलावा, यह आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद जैसी तीन बुराइयों से निपटने के लिए भी काम करता है।

शिखर सम्मेलन का महत्व

एससीओ का शिखर सम्मेलन हर साल आयोजित किया जाता है, जहाँ सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष या सरकार के प्रमुख मिलते हैं। यह बैठकें महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि इनमें ये नेता आपसी संबंधों पर चर्चा करते हैं, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर साझा रुख अपनाते हैं, और भविष्य की रणनीतियों पर काम करते हैं।

इस मंच पर भारत के लिए यह खास महत्व रखता है। यह भारत को चीन और रूस जैसे बड़े देशों के साथ सीधे बातचीत करने का अवसर देता है, खासकर जब वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक समीकरण बदल रहे हों। भारत ने इस मंच का उपयोग आतंकवाद के खिलाफ अपनी चिंताओं को उठाने और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए किया है।

एससीओ का शिखर सम्मेलन केवल एक औपचारिक बैठक नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मंच है जो दुनिया की एक बड़ी आबादी और अर्थव्यवस्था को एक साथ लाता है, जिससे यह वैश्विक शक्ति संतुलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में शामिल होने से इस बैठक ने दुनिया का ध्यान खींचा है। यह सिर्फ एक नियमित बहुपक्षीय बैठक नहीं है, बल्कि भू-राजनीतिक बदलाव और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को फिर से परिभाषित करने का एक महत्वपूर्ण मंच है, खासकर बढ़ते अमेरिकी व्यापारिक तनावों के बीच।

​भारत के लिए महत्वपूर्ण

​भारत के लिए यह शिखर सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण था। यह प्रधानमंत्री मोदी की चीन की सात साल बाद पहली यात्रा थी, जो 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बाद हुई। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात को दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। दोनों नेताओं ने व्यापार, सीमा प्रबंधन और अन्य क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा की, जिससे आपसी विश्वास और सम्मान को बढ़ावा मिल सके।

​RIC तिकड़ी की वापसी

​शिखर सम्मेलन में मोदी, शी और पुतिन की मौजूदगी ने रूस-भारत-चीन (RIC) तिकड़ी को फिर से जीवंत करने की संभावना को जन्म दिया है। यह गठबंधन, जो मूल रूप से अमेरिका के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बना था, अब नए सिरे से ध्यान आकर्षित कर रहा है, खासकर जब अमेरिका भारत सहित कई देशों पर टैरिफ लगा रहा है। यह शिखर सम्मेलन इन देशों को आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने और अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए एक मंच प्रदान करता है।

​वैश्विक दक्षिण की बढ़ती ताकत

​उच्च-स्तरीय द्विपक्षीय बैठकों के अलावा, SCO शिखर सम्मेलन सदस्य देशों को साझा चुनौतियों का समाधान करने का अवसर भी देता है। सुरक्षा, व्यापार और आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए, शिखर सम्मेलन ने अगले दशक के लिए एक विकास रणनीति भी अपनाई है। यूरेशिया के कई नेताओं की उपस्थिति 'ग्लोबल साउथ' की बढ़ती ताकत और एकजुटता को दर्शाती है। जैसे-जैसे दुनिया जटिल भू-राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही है, SCO जैसे बहुपक्षीय मंच संवाद और एक नई, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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