रामगढ़ बांध पर कृत्रिम बारिश: क्या राजस्थान का जल संकट होगा दूर?


कृत्रिम वर्षा: क्या यह रेगिस्तान में बारिश लाने का जादू है? रामगढ़ बांध के प्रयासों की एक झलक

​राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य है, जो अपनी खूबसूरती, समृद्ध संस्कृति और विशाल थार रेगिस्तान के लिए जाना जाता है। हालांकि, यहाँ की सबसे बड़ी चुनौती पानी की कमी है। ऐसे में, "कृत्रिम वर्षा" या क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) एक आशा की किरण बनकर उभरी है। यह कोई जादू नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसके जरिए बादलों से बारिश करवाई जाती है। आइए, जानते हैं कि यह कैसे काम करती है और हाल ही में राजस्थान के रामगढ़ बांध पर किए गए प्रयासों की क्या स्थिति है।

​क्या है कृत्रिम वर्षा?

​कृत्रिम वर्षा एक वैज्ञानिक विधि है जिसमें कुछ खास रसायनों जैसे सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide), पोटेशियम आयोडाइड या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) को विमान या रॉकेट की मदद से बादलों में फैलाया जाता है। ये रसायन हवा में मौजूद नमी को अपनी ओर खींचते हैं और पानी की बूंदों को जमने में मदद करते हैं। जब ये बूंदें पर्याप्त रूप से बड़ी हो जाती हैं, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण वे बारिश के रूप में धरती पर गिरने लगती हैं।

​यह प्रक्रिया हर बादल पर काम नहीं करती। इसके लिए खास तरह के बादलों का होना जरूरी है, जिनमें नमी की मात्रा अच्छी हो। इसे अक्सर उन क्षेत्रों में आजमाया जाता है जहाँ सूखे की स्थिति है या जहाँ पानी की कमी एक बड़ी समस्या है।

​रामगढ़ बांध पर कृत्रिम वर्षा का प्रयास: एक आधुनिक पहल

​लगभग दो दशकों से सूखे पड़े जयपुर के ऐतिहासिक रामगढ़ बांध को फिर से भरने के लिए हाल ही में कृत्रिम वर्षा का एक अनूठा और आधुनिक प्रयोग शुरू किया गया है। यह प्रयोग भारत में अपनी तरह का पहला प्रयास है, जिसमें पारंपरिक विमानों के बजाय ड्रोन और AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।

यह कैसे काम कर रहा है?

​एक निजी कंपनी, एक्सेल-1 इंक, भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों के साथ मिलकर यह पायलट प्रोजेक्ट चला रही है। इस प्रोजेक्ट के तहत:

  • AI तकनीक बादलों में नमी और हवा की दिशा का विश्लेषण करती है।
  • ​इस डेटा के आधार पर, खास तौर पर बनाए गए 'मेक इन इंडिया' ड्रोन को बादलों के बीच भेजा जाता है।
  • ​ये ड्रोन बादलों के भीतर सिल्वर आयोडाइड और अन्य रसायन छिड़कते हैं।
  • ​ये रसायन बादलों में मौजूद नमी के कणों को मिलाकर पानी की बड़ी बूंदें बनाते हैं, जिससे बारिश होती है।
  • 1. जोधपुर में शुरुआती प्रयोग:
  • जोधपुर स्थित रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के एक केंद्र, रक्षा प्रयोगशाला (Defense Laboratory) ने 2017 में कृत्रिम वर्षा पर कुछ शुरुआती प्रयोग किए थे। इन प्रयोगों का उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या इस तकनीक का उपयोग थार रेगिस्तान जैसे शुष्क क्षेत्रों में किया जा सकता है। इन परीक्षणों से प्राप्त डेटा ने यह दिखाया कि सीमित सफलता के साथ कुछ क्षेत्रों में वर्षा को प्रेरित करना संभव है, लेकिन इसके लिए बड़े पैमाने पर और व्यवस्थित प्रयासों की आवश्यकता है।
  • 2. पायलट प्रोजेक्ट की योजनाएँ:
  • राजस्थान सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बनाई है। इन योजनाओं का मकसद है कि राज्य के कुछ चुनिंदा क्षेत्रों जैसे कि जयपुर, उदयपुर और कोटा में कृत्रिम वर्षा का सफल परीक्षण किया जाए। इसका उद्देश्य यह भी है कि इस तकनीक की लागत, प्रभाव और पर्यावरणीय परिणामों का मूल्यांकन किया जा सके। यदि ये पायलट प्रोजेक्ट सफल होते हैं, तो इसे राज्य के अन्य सूखाग्रस्त हिस्सों में भी लागू किया जा सकता है।

क्या ये प्रयास सफल हो रहे हैं?

​शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, रामगढ़ बांध क्षेत्र में कई बार यह प्रयोग किया गया है। शुरुआती कुछ प्रयास सफल नहीं रहे, लेकिन हाल ही में 1 सितंबर और 5 सितंबर 2025 को किए गए प्रयोगों में हल्की बारिश दर्ज की गई। यह एक बड़ी सफलता मानी जा रही है, खासकर इसलिए क्योंकि यह दर्शाता है कि तकनीक काम कर रही है और इससे उथले बादलों में भी बारिश करवाई जा सकती है।

​क्या कृत्रिम वर्षा पर्यावरण के लिए सुरक्षित है?

​कृत्रिम वर्षा के उपयोग पर कुछ चिंताएँ भी हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इसमें इस्तेमाल होने वाले रसायन पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकते हैं, हालांकि, आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले सिल्वर आयोडाइड को गैर-विषाक्त (non-toxic) माना जाता है। फिर भी, बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल करने से पहले इसके दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन करना जरूरी है।

​यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि यह कोई स्थायी समाधान नहीं है। यह सिर्फ एक अस्थायी उपाय है जो सूखे की स्थिति में मदद कर सकता है। पानी की समस्या का स्थायी हल जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और जल प्रबंधन की बेहतर तकनीकों में निहित है।

​निष्कर्ष

​रामगढ़ बांध पर कृत्रिम वर्षा का प्रयोग राजस्थान और भारत के लिए एक नई उम्मीद जगाता है। ड्रोन और AI जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग न केवल इस प्रक्रिया को अधिक सटीक बनाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि हम जलवायु चुनौतियों का सामना करने के लिए कितने तैयार हैं। यदि ये पायलट प्रोजेक्ट सफल होते हैं, तो यह तकनीक राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी जल संकट को दूर करने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

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