क्यों हुआ नेपाल मैं विद्रोह......
नेपाल में विद्रोह: एक ऐतिहासिक यात्रा
नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक छोटा सा देश, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। लेकिन इस देश का इतिहास सिर्फ पहाड़ों और मंदिरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक उथल-पुथल और विद्रोहों से भी भरा हुआ है। इन विद्रोहों ने नेपाल की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को गहराई से बदला है।
राणा शासन का अंत
नेपाल में विद्रोह की कहानी की शुरुआत 20वीं सदी के मध्य में होती है। उस समय नेपाल पर राणा परिवार का शासन था, जो 104 सालों से चला आ रहा था। यह शासन वंशानुगत और निरंकुश था। लोग इस शासन से परेशान थे। 1950 में, नेपाली कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में एक सशस्त्र विद्रोह शुरू हुआ। इस विद्रोह को राजा त्रिभुवन का भी समर्थन मिला, जो राणाओं के नियंत्रण से मुक्ति चाहते थे। भारत के समर्थन और लोगों के भारी विरोध के कारण, 1951 में राणा शासन का अंत हुआ और नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना हुई।
माओवादी विद्रोह: एक लंबा संघर्ष
नेपाल के इतिहास का सबसे बड़ा और सबसे लंबा विद्रोह माओवादी विद्रोह था, जो 1996 में शुरू हुआ। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने राजशाही और सरकार के खिलाफ 'जनयुद्ध' की घोषणा की। उनका उद्देश्य सामंती राजशाही को खत्म करना और एक गणतंत्र की स्थापना करना था।
यह विद्रोह लगभग दस वर्षों तक चला, जिसमें 17,000 से अधिक लोग मारे गए। माओवादी गुरिल्ला युद्ध तकनीकों का उपयोग करते थे और उन्होंने देश के कई हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। इस विद्रोह ने नेपाल की अर्थव्यवस्था और समाज को बुरी तरह प्रभावित किया।
2006 का जन आंदोलन
2001 में राजा बीरेंद्र और उनके परिवार की हत्या के बाद, राजा ज्ञानेंद्र सत्ता में आए। उन्होंने धीरे-धीरे सारी शक्तियां अपने हाथ में ले लीं और देश में निरंकुश शासन स्थापित करने की कोशिश की। इससे जनता में भारी आक्रोश फैल गया।
2006 में, सात राजनीतिक दलों के गठबंधन और माओवादियों ने मिलकर एक बड़ा जन आंदोलन शुरू किया, जिसे 'लोकतन्त्र आन्दोलन' कहा गया। लाखों लोग सड़कों पर उतर आए और राजा ज्ञानेंद्र के शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया। यह आंदोलन इतना विशाल था कि राजा को झुकना पड़ा।
इस आंदोलन के परिणामस्वरूप, 2008 में नेपाल से राजशाही का अंत हुआ और नेपाल एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया।
नेपाल में हाल ही में हुए राजनीतिक संघर्ष
नेपाल में हाल के वर्षों में कई राजनीतिक संघर्ष और उथल-पुथल देखने को मिली है, भले ही अब वहाँ लोकतंत्र स्थापित हो चुका है। ये संघर्ष अक्सर अस्थिर सरकारों, संवैधानिक विवादों और सत्ता की लड़ाई से जुड़े हुए हैं।
संवैधानिक संकट और सरकार का गिरना
नेपाल का संविधान 2015 में लागू हुआ था, लेकिन इसके बाद भी राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं हो पाई। 2020 और 2021 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने दो बार संसद को भंग करने की कोशिश की। उनके इस कदम से देश में एक बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक संकट पैदा हो गया।
इस दौरान, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) के भीतर भी सत्ता के लिए संघर्ष चरम पर था। ओली और पार्टी के दूसरे अध्यक्ष पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' के बीच मतभेद इतने बढ़ गए कि पार्टी दो गुटों में बंट गई।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों बार संसद को बहाल करने का आदेश दिया, जिससे ओली को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार बनी।
गठबंधन सरकारों की अस्थिरता
नेपाल की राजनीति में गठबंधन सरकारें एक आम बात बन गई हैं, लेकिन ये सरकारें अक्सर अल्पकालिक होती हैं। हाल के वर्षों में कई प्रधानमंत्रियों ने पद संभाला और छोड़ा है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में बाधा आई है।
2022 के अंत में हुए चुनावों के बाद, प्रचंड के नेतृत्व में एक नई गठबंधन सरकार बनी। लेकिन यह गठबंधन भी ज्यादा दिन नहीं चला। कुछ ही महीनों बाद, प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर एक नया गठबंधन बनाया और प्रधानमंत्री बने रहे। यह राजनीतिक अस्थिरता दिखाती है कि कैसे सत्ता की लड़ाई के लिए पार्टियां आसानी से गठबंधन बदल लेती हैं।
नागरिक समाज का विरोध
राजनीतिक अस्थिरता के अलावा, नेपाल में हाल के वर्षों में नागरिक समाज का विरोध भी देखा गया है। भ्रष्टाचार, महंगाई और खराब शासन व्यवस्था के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरते रहे हैं।
उदाहरण के लिए, 2023 में नकली भूटानी शरणार्थी घोटाले के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इस घोटाले में कई बड़े राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के शामिल होने के आरोप लगे थे। इन विरोध प्रदर्शनों ने सरकार पर दबाव डाला और कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया।
ये हालिया संघर्ष दर्शाते हैं कि नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था अभी भी परिपक्व हो रही है और उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। राजनीतिक दलों के बीच सहमति की कमी और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं देश की स्थिरता के लिए सबसे बड़ी बाधा बनी हुई हैं।
निष्कर्ष
नेपाल में हुए इन विद्रोहों ने न केवल राजशाही को समाप्त किया, बल्कि एक नए लोकतांत्रिक और संघीय नेपाल की नींव भी रखी। इन विद्रोहों ने यह साबित कर दिया कि जब लोग एकजुट होते हैं, तो वे बड़े से बड़े शासन को भी उखाड़ फेंक सकते हैं। आज, नेपाल एक लोकतांत्रिक देश के रूप में आगे बढ़ रहा है, लेकिन इन ऐतिहासिक विद्रोहों की यादें उसके इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई हैं।
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